Prayagraj Mahakumbh 2025: प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का शुभारंभ हो चुका है। महाकुंभ जिसका साक्षी बनने के लिए लोग 12 सालों का लंबा इंतेजार बड़े बेसबरी से करते हैं। संगम नगरी में करोड़ो श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा है, और लाखों की संख्या में नागा साधु गंगा स्नान के लिए पहुंचे हैं। इन साधुओं में महिला नागा साधु (Mahila Naga Sadhu) की भी संख्या कोई कम नहीं हैं, उनकी जीवनशैली और नियम- परम्पराओं ने सबका ध्यान खींच लिया है। इस लेख में आज हम आपको महिला नागा साधुओं से जुडी रोचक बातें और उनके वस्त्र धारण से लेकर उनकी दिनचर्या और दान दक्षिणा प्रक्रिया से जुड़ी इंट्रेस्टिंग फैक्ट्स बताएंगे।
महिला नागा साधुओं का जीवन और उनके वस्त्र धारण के नियम
नागा साधुओं में कुछ वस्त्रधारी होते हैं और कुछ बिना वस्त्र के रहते हैं जिन्हें दिगंबर कहा जाता है। लेकिन कोई भी महिला नागा साधु दिगंबर नहीं होती, वो हमेशा वस्त्र पहनती हैं। हालांकि इससे भी जुड़े कूच नियम हैं जिनका महिला नागा साधुओं को पालन करना पड़ता है। इन नियमों में कपड़े का रंग और प्रकार शामिल है। महिला नागा साधुओं के कपड़े में किसी भी तरह की सिलाई नहीं होती है, उन्हें केवल बिना सिलाई किए गए कपड़े पहनने की ही अनुमति होती है, जिसे गंती कहा जाता है। इन कपड़ों का रंग हमेशा गुरुआ यानि हल्का भगवा होता है। महिला नागा साधुओं को अपने माथे पर विशेष तिलक लगाना होता है, जिससे उनकी पहचान होती है।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया
महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया जितनी आसान लगती है उतनी है नहीं, उन्हें कई स्तरों से होकर गुजरना पड़ता है, तब जाकर वो कहीं नागा साधु बन पाती हैं। ये प्रक्रिया जितनी लंबी है उससे भी ज्यादा कठिन होती है। नागा साधु बनने से पहले महिलाओं को 6 से 12 सालों तक ब्रह्मचर्य का सख्ती से पालन करना होता है। इस प्रक्रिया के दौरान उन्हें सांसारिक मोह-माया से पूरी तरह से दूरी बनाकर रखना होता है। महिला नागा साधु बनने से पहले उन्हें जिंदा रहते हुए अपना पिंडदान करना होता है। इस प्रक्रिया को उनके सांसारिक जीवन से संन्यास लेने और ईश्वर को समर्पित होने का प्रतीक माना जाता है।
पिंडदान के बाद यह माना जाता है कि उनका पूर्व जीवन समाप्त हो गया है और वो सांसारिक मोह-माया से दूर हो चूंकि हैं। महिलाओं की नागा साधु बनाने की प्रक्रिया बेहद पवित्र और अनुशासनपूर्ण होती है। अखाड़ों के सर्वोच्च पदाधिकारी आचार्य महामंडलेश्वर खुद इस प्रक्रिया की देखरेख करते हैं। दीक्षा के दौरान महिला साधुओं को उनका जीवन सिर्फ भगवान की भक्ति और साधना को समर्पित करने के लिए सिखाया जाता है।
महिला नागा साधुओं की जीवनशैली
महिला नागा साधुओं का जीवन पूरी तरह से साधना और तपस्या पर आधारित होता है। वे सुबह सवेरे उठकर नदी में स्नान करती हैं और शिव की आराधना करती हैं। सुबह स्नान के बाद पूरा दिन भगवान के नाम का जाप करती हैं। शाम को वे भगवान दत्तात्रेय की पूजा करतीं हैं जो उनकी दिनचर्या का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
महाकुंभ में महिला नागा साधु का महत्व
महाकुंभ में महिला नागा साधुओं का उपस्थिति होना न केवल अखाड़ों की परंपरा को दर्शाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि महिलाओं और पुरुषों दोनों को आध्यात्मिक मार्ग पर समान अधिकार प्राप्त है। महाकुंभ में महिला नागा साधुओं को देखना एक अद्भुत अनुभव है। उनका साधना और तपस्या से भरा जीवन प्रेरणास्त्रोत है।